Sunday 15 May 2016

महामना स्व. भैरोसिंह शेखावत की पुण्यतिथि


    सुरेन्द्रसिंह शेखावत बीकानेर।     
  वो आज हमारे बीच नही है पर क्या इस तरह उनको भुला देना ठीक है। यह सोचकर ही शर्म आती है कि उनके सियासती उत्तराधिकारी जिस हल्केपन पर उत्तर आए है क्या उनको जरा भी ग्लानिभाव महसूस नही होता।
             1952 में वो जब पहली बार विधायक बने तो विधानसभा का रास्ता आसान न था । साधारण राजपूत परिवार में जन्मे थे उस समय राजे महाराजे और जागीरदारों के युग में साधारण राजपूत के लिए स्वीकार्यता बनाना भी किसी दलित संघर्ष से कम नही था फिर भी वो लड़े और जीते। पहली विधानसभा में ही एक बिल को लेकर उन्हें विचारधारा और जाति के मध्य संघर्ष को झेलना पड़ा जब सब साथ छोड़ गए तब भी वे जातीय विरोध के बावजूद विचार के साथ कर्मठता से खड़े रहे तभी से वे नेता हो गए। इस बात पर सदैव अडिग रहे चाहे सती प्रकरण भी क्यों न हो वे सदैव कानून के साथ खड़े रहे ।
                 रेगिस्तान के धोरो से लेकर पूरब के पहाड़ो तक साईकिल ,ऊंट, छकडो और बेलगाडी के रास्ते पुरे सूबे की ऐसी कोई  गांव ढाणी की गली नही रही जहां वो पहुंचे नही।
राजस्थान की विधानसभा में जब वो बोलते थे तो गरीब मजलूम वंचित पीड़ित शोषित उपेक्षित की आवाज मुखर होती थी बाकी सब सुनते थे सत्ता पक्ष भी और विरोधी दल भी।
              जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी के सफर में सूबे में मुख्य सारथि रहे।दिन भर तांगे में आम सभा का एलान करने से लेकर सभा की दरी बिछाने और फिर भाषण देने तक का काम खुद ही किया तब जाकर आज ये 163 सदस्यों का कंगूरा खड़ा हुआ।
              तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में उनके कामो को गिनवाए तो जगह कम पड़ जाएगी। अंत्योदय ,काम के बदले अनाज और ऐसी न जाने कितनी योजनाए उनकी कलम की स्याही से शुरू हो पाई । गरीब को गणेश मानकर दिन रात जुटे रहे।
                खाचरियावास की धूल भरी गलियों से लेकर मुल्क की राजधानी में उपराष्ट्रपति भवन तक का रास्ता बहुत उबड़ खाबड़ रहा पर वो हर मार्ग पर सधे कदमो से चलते रहे।
वहां भी सूबे की चिंता उन्हें सालती रही जब वहां से आए तो यहां के हालात देखे नही गए।अपने हाथों से बनाए घरोंदे के हालात देखे न गए तो फिर से निकल पड़े गांव ढाणियों में । मुखर होकर बोले पर अब सुनने वाले साथ जुड़ने वाले वो लोग न थे तो उनकी आवाज भी मन्द हो पड़ी।
            कुछ साल पहले आज ही के दिन वो हमे छोड़कर चले गए।पर उनका लगाया विचारों का पौधा वट वृक्ष बन गया।विडम्बना यह है कि उनके विचार के कंगूरे पर खड़े सियासती लोगो के मन बहुत छोटे हो गए ।
              कल जब कुछ साथी पीड़ा जता रहे थे कि दल के दफ्तर तक में उनकी जयंती पुण्यतिथि तक नही मनाई जाती तो बड़ी पीड़ा हुई क्या यह हक नही बनता कि राजस्थान की विधानसभा में उनकी मूर्ति लगे ? राजस्थान के सबसे बड़े विश्वविद्यालय का नामकरण उनके नाम पर ? जबकि सूबे से लेकर मुल्क तक उन्ही के दल की सरकार है अरे इतना बड़ा दिल तो उनके विरोधी भी रखते है कल को उन्होंने ऐसा कर दिया तब किसको मुंह दिखाओगे ?
                    खैर उनकी याद मूर्तियो और नामकरण की मोहताज नही है । अभी ऐसी पीढियां मौजूद है जो उन्हें याद रखेगी।
आज स्व. भैरोसिंह शेखावत की पुण्यतिथि पर शत शत नमन करते हुए वन्दन करता हूँ।

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