बालक को विद्यालय में घर जैसा वातावरण व अपनत्व मिलेगा तो बालक का विकास स्वतः
ही होगा। जितना शिक्षक समर्पण होगा उतना बालक के जीवन में निखार आएगा। बालक
जैसा देखता है वैसा सोचता है और जैसा सोचता वैसा व्यवहार करता है इसलिए अपने
घरों में श्रेष्ठ महापुरूषों के चित्र होने चाहिए। सुबह उठते ही बालक को
मधुर भजन सुनने को मिलेगा तो बालक का पूरा दिन व्यवस्थित होगा। और बालक
ने उठते ही जिस भजन को सुना उनके शब्द दिनभर बालक दिमाग में रहेंगे। और
वैसा विचार करेगा। परिवार संस्कार की सबसे बड़ी पाठशाला होती है। माँ की
भूमिका न केवल बालक के जीवन अपितु परिवार में महत्वपूर्ण होती है। बालक का
मन व स्वास्थ्य की चिन्ता तो माँ करती है लेकिन को मनुष्य बनाने की आवश्यकता है।
माँ जैसा चाहेगी वैसा बालक का निर्माण कर सकती है। ये विचार आदर्श विद्या मन्दिर
बायतु के मातृ शक्ति सम्मेलन में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में विद्या भारती के
क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य श्रीमान राधेश्याम शर्मा ने व्यक्त किये।
कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन महानुभावों द्वारा माँ शारदा के समक्ष
दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। प्रधानाचार्य बलदेव व्यास ने अतिथियों का परिचय करवाकर
विद्यालय का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमती गैरों देवी प्रधान बायतु ने कहा
कि माँ शब्द में ही ममता का भाव होता है माँ शब्द के उच्चारण मात्र से आत्मा
में शान्ति की अनुभूति होती है। तथा बालक के सर्वांगीण विकास में माँ की
महत्वपूर्ण भूमिका होती है। माँ व बालक का मन हमेशा एक होता है जैसे ही
बालक पर किसी प्रकार का संकट या कठिनाई होती है तो माँ को स्वतः ही महसूस
होगा कि मेरे बालक को किसी प्रकार परेशानी है। और वह उसका हल निकालती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती बाली देवी ने कहा कि हम जिस प्रकार के बालक का
निर्माण करना चाहते है उसकी तैयारी हमें बालक के गर्भावस्था से ही करनी
होगी। बालक माँ के गर्भ में जो बाते सीखता है वो अपने व्यवहार में भी
वही अपनाता है। इसलिए माँ को बालके के गर्भावस्था से अच्छा सुनना, अच्छा
देखना व अच्छा करना चाहिए। हम सामान्यतः बालक शारीरिक विकास का ध्यान तो
गर्भावस्था से ही रखते है लेकिन जब तक मानसिक व बौद्धिक विकास का भी ध्यान शुरू
से नहीं रखा तो जैसा हम चाहते वैसा निर्माण करना सम्भव नहीं होगा। इसलिए
गर्भावस्था से ही बालक के शारीरिक , मानसिक व बौद्धिक विकास पर हमें ध्यान देना
होगा।
स्थानीय समिति की सदस्या श्रीमती सीमा चैधरी ने कहा कि बालक जैसा बनना
चाहता हमें वैसा वातावरण देना होता है बालक को उचित वातावरण मिलेगा तो
निश्चित रूप से बालक उपलब्धि हासिल करेगा। आज के समय में भोजन पर विशेष ध्यान देने
की आवश्यकता है। शुद्ध व सात्विक भोजन से भी संस्कार पक्ष मजबूत होता है।
बालिका विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री अमोलख राम पालीवाल ने भी विचार व्यक्त किये।
मंच संचालन कक्षा दशमी की बहिन सुष्मिता चैधरी ने किया।
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