Sunday 6 September 2015

खाद्य संयम व योग साधना द्वारा बनाएं सुखमय बुढ़ापा-सध्वी संघप्रभा

सरूप सिंधवी 
बाड़मेर। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदूषी षिष्या साध्वी संघप्रभा (ठाणा-5) के सांनिध्य में चित्तसमाधि षिविर का आयोजन किया गया। ‘‘कैसे हो सुखमय बुढ़ापा’’ विषय पर आयोजित इस षिविर का
शुभारम्भ साध्वी कर्तव्ययषा के मंगलाचरण ‘‘कल्पनाएं सब धरी रह जायेगी’’ गीत से हुआ। साध्वी प्रांषुप्रभा ने अपनी भावभिव्यक्ति मुक्तक गीत एवं संस्मरणो के माध्यम से करते हुए कहा‘‘सिर्फ सत्तर वर्ष पार करने का नाम ही बुढ़ापा नही है ‘‘ हकीकत में जिसके जीवन में आषा उत्त्साह और उमंग हिलोरें लेती है वह अस्सी वर्ष का होकर भी नौजवान रह सकता है। साध्वी संघप्रभा ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा-बुढ़ापे का सम्बन्ध मूलतः अवस्था से नहीं व्यक्ति की इन्द्रिय क्षमता के क्षरण एवं आत्मबल के कमजोर होने से है। अपेक्षा है हर व्यक्ति बुढापा आने से पूर्व ही सादगी, खाद्यसंयम, योग-प्राणायाम एवं नियमित दिन चर्या द्वारा स्वंय को स्वच्छ, तनावमुक्त प्रसन्न तथा सदा उपयोगी बनाए रखे ताकि बुढापा किसी के लिए भारभूत न बने। समारोह में षिविर के मुख्य
वक्ता डाॅ. बंषीधर तातेड़ ने बुढ़ापे की सुखमय बनाने के महत्वपूर्ण टिप्स बताते हुए कहा- अवस्था आना किसी के हाथ की बात नहीं है किन्तु आदतों को बदलना और समय एवं परिस्थिति के अनुसार मन को ढालना हमारे हाथ में है। इस अवस्था में भावों की श्रेणी उज्ज्वल रहे। परमात्मा की शरण स्वीकार करे। जहर को पीना सीखें, होठोें को सीना सीखे। प्रस्तुति के क्रम में वकील मुकेष जैन, मेवाराम जैन , पानीदेवी सिंघवी, जेठीदेवी डूंगरवाल, दीपिका चैपड़ा आदि अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे  साध्वी अखिलयषा ने कहा- त्याग तपस्या व समता सहिष्णुता द्वारा व्यक्ति चितसमाधिस्थ  रह सकता है। कार्यक्रम का कुषल संचालन साध्वी मृदुप्रभा ने किया। ते.यु.प. के पूर्व अध्यक्ष रूपेष मालू ने समागत अतिथियों का स्वागत एवं आभार ज्ञापन किया। इस अवसर पर तेरापंथ सभा अध्यक्ष रतनलाल गोलेच्छा, उपाध्यक्ष पारसमल गोलेच्छा, समेत महिलामण्डल, कन्यामण्डल, ते.यु.प. व ज्ञानषाला के सभी बच्चे व पदाधिकारी गण मौजूद थे।


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