Tuesday 7 June 2016

परंपरागत जलाशयों की अवहेलना,होगी पेयजल की किल्लत




घमण्डाराम परिहार

बायतु। जल ही जीवन का आधार है। बिन पानी सब सून,जल के इसी महत्व को देखते हुए हमारे पूर्वजों ने तालाब,पोखर, नाडी,कुआँ,बावड़ी आदि जलाशयों का निर्माण कर उसमें बरसाती पानी सहेजने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। उन्होंने विशेष धार्मिक पर्वो से जोडकर मानसून आने से पूर्व इन जल-स्रोतों की साफ- सफाई किया करते थे ताकि आने वाली बारिश से इन जलाशयों में स्वच्छ पानी की आवक हो सके।महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना आने के बाद हर वर्ष  इन जलाशयों की भलीभांति साफ सफाई हो रही थी जिससे हर वर्ष स्वच्छ पानी की आवक हो रही थी। विडंबना यह है कि इस बार महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में इन जलाशयों की ओर ध्यान बिल्कुल भी नहीं दिया गया, जिससे यह  जलाशय कंटीली झाड़ियों सहित कचरे से अटे पड़े हैं। मानसून से पूर्व अगर जलाशयो की सार-संभाल करना नितांत आवश्यक है। विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में इन जलाशयों का पुनरुद्धार संरक्षण आवश्यक है,अन्यथा इस भूभाग में पेयजल की भारी किल्लत का सामना करना पड सकता है।ग्रामीण स्तर पर तो पानी के लिए त्राहि त्राहि मची रहती है विशेष तौर पर गर्मियों के मौसम में तो अलग ही तरीका रहता है।पानी हेतु दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है।इन दूर दराज फेले रेतीले धोरो में पानी हेतु कई कोसो दूर जाना पड़ता है।सरकार द्वारा पक्की नाड़ियाँ निर्माण हेतु बजट आता है,उनका निर्माण भी होता है।विडंबना यह है कि निर्माण के बाद में समुचित रख-रखाव के अभाव में नाडिया कचरे,कीचड़ से भर जाती है।बजट के अभाव में साफ सफाई को लेकर नाड़ियाँ आंसू बहा रही है।

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